अमृता प्रीतम,छत्तीसगढ़ी
पृष्ठभूमि में 2 कहानियाँ
और यहाँ से नाता….. {किश्त 264}
अमृता प्रीतम,(1919 – 2005 ) पंजाबी के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक थी।पंजाब (भारत)के गुजराँ वाला जिले में पैदा हुईं थीं।अमृता प्रीतम को पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री माना जाता है।उन्होंने लग भग 100 पुस्तकें लिखी हैं जिनमें उनकी चर्चित आत्म कथा ‘रसीदी टिकट’ भी शामिल है। वे उन साहित्य कारों में थीं जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनु वाद हुआ। अंतिम दिनों में अमृता प्रीतम को भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान ‘पद्मविभूषण’ भी प्राप्त हुआ।
साहित्य अकादमी पुरस्कार से तो पहले ही अलंकृत किया जा चुका था,उनकी दो कहानियां ‘लटिया की छोकरी’ और ‘गांजे की कली’ थीं वो थीं तो पंजाबी में पर उसकी पृष्ठभूमि, पात्र और उनके बीच का वार्तालाप छत्ती सगढ़ी में था, उनके छत्तीस गढ़ ख़ासकर अकलतरा, बिलासपुर प्रवास को लेकर चर्चा होती है पर अधिकृत प्रमाण नहीं मिला है,पर यह तो तय है उनकी रिश्तेदारी छत्ती सगढ़ से थी और उसी से प्रभावित हो उन्होंने छत्ती सगढ़ पृष्ठभूमि पर कहानी लिखी हो…!वरिष्ठ साहित्य कार गुलबीर सिंह के शब्दों में आठवें दशक में मेरीकहा नियाँ अमृता की पंजाबी पत्रिका “नागमणी” में प्रका शित रही थीं।आगे कहानी अमृता प्रीतम और छत्तीस गढ़ की है।आठवें दशक के मध्य में जब मैंने अमृता प्रीतम की दो कहानियाँ “लटिया की छोकरी” और “गांजे की कली” पढ़ीं तो मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। दोनों कहानियाँ थीं तो पंजाबी में लेकिन इनकी पृष्ठभूमि ,पात्र,उनके बीच का वार्तालाप छत्तीसगढ़ी में था।
अमृता के कथा संसार की तरह दोनों नायिका प्रधान कहानियाँ थीं।सामा जिक एवं आर्थिक तौर पर अति साधारण परिवार की यह दोनों नायिकाएं स्वाभा विक तौर पर आ खडी़ हुई अप्रिय स्थितियों से जूझकर उनमें से निकलती हैं, छत्ती सगढ़ी नारी की वह आदर्श पहचान स्थापित करती हैं।जिसके लिए छत्तीसगढ़ उन दिनों संघर्षरतथा।कहानियों से प्रभावित होकर अमृता को पत्र लिख यह जानना चाहा कि क्या कभी उनका छत्तीसगढ़ आना हुआ…..? यदि नहीं तो इस अंचल के लोक से उन्होंने ये दोनोंपात्र कैसे चुने…?क्या उन्हें छत्ती सगढ़ी आती है…!उन्होंने जो उत्तर दिया था वह मुझे पूरी तरह याद नहीं,लेकिन उसका आशय यही था कि थोड़ी बहुत छत्तीसगढ़ी मैंने पारिवारिक मित्र बिलासपुर के अमोलक सिंह भाटिया से सीखी,उन्ही की जान कारी के आधार पर दोनों चरित्रों को जाना, इन पर कहानियाँ लिखीं,कभी भी छत्तीसगढ़ आने पर तोसाफ उन्होंने इन्कार किया था, यह धारणा कि वे कभी छत्तीसगढ़ आई थीं और यहां अकलतरा में कुछ दिन रुकीं पूरी तरह निराधार हो जाती है।पर यह तय हुआ कि अमृता प्रीतम छत्तीस गढ़ में कभी नहीं आईं, उन्हें छत्तीसगढ़ी का आरंभिक ज्ञान भी नहीं था लेकिन उनकी लिखी इन दोनों कहानियों में छत्तीसगढ़ के ग्राम्य जीवन, छत्तीसगढ़ी के प्रस्तुतिकरण को जिस सहजता के साथ पाते हैं उसके लिएअमोलक सिंह की सूझ औरअंचल के प्रति उनके लगाव का आभारी होना चाहिए। वैसे अमृता प्रीतम,बिलासपुर के प्रीत पाल सिंह भाटिया की माँ सुखवंत कौर की मौसी ही लगती थी।सुखवंत के नाना और अमृता के पिता भाई थे।प्रीतपाल के पिता अमो लक सिंह भाटिया थे।कुछ का दावा है कि इन्हीं के प्रयास से अमृता प्रीतम, अकलतरा,बिलासपुर आईं थीँ,पर यह केवल दावा है, प्रमाण नहीं है। जो भी हो अमृता प्रीतम की कलम से छत्तीसगढ़ी कहानी ने जन्म लिया यह उल्लेखनीय है। (उनकी दोनों छत्तीसगढ़ी पृष्ठभूमिकी कहानियों के हिंदी अनुवाद का अंश भी साथ में संलग्न है…)