बस्तर में जुरसिक काल, डायनासोर और विलुप्त प्रजाति की वनस्पति ‘ट्री-फर्न’..{किश्त 259}

बस्तर में जुरसिक काल,
डायनासोर और विलुप्त
प्रजाति की वनस्पति
‘ट्री-फर्न’..{किश्त 259}

बस्तर में बैलाडीला की पहाड़ी में 90 फीट ऊंचे जलप्रपात की खोज हुई है। हरी घाटी में स्थित इस जल प्रपात के चारों तरफ ‘ट्री- फर्न ‘ के सैकड़ों पेड़-पौधे भी मिले हैं। अफसरों का दावा है कि यह जुरासिक काल के हैं।बताया जाता है, बैलाडीला की वादियों में हजारों साल पहले शाका हारी डायनासोर की प्रजाति रहती थी, मुख्य आहार ट्री फर्न था।ट्री फर्न की पत्तियों को खाकर वे जलप्रपात के पानी से प्यास बुझाते होंगे । लोगों ने इसे ‘द जुरासिक पार्क’ नाम दे दिया है।माना जाता है कि शाकाहारी डाय नोसोर का मुख्यभोजन फर्न ही था। पादप प्रजाति मध्य भारत में सिर्फ बैलाडीला के पहाड़ पर ही मिलती है।दंते वाड़ा के किरंदुल से 10 -12 किमी दूर बैलाडीला की पहाड़ी में जलप्रपात और ट्री फर्न का बगीचा है। लोगों की नजरों से ओझल था। जिस जगह यह स्थित है उस इलाके को स्थानीय लोग हरी घाटी के नाम से जानते हैं।यह इलाकाहमेशा घने पेड़-पौधों से हरा-भरा रहता है।संस्कृति, परंपरा में अनूठे छत्तीसगढ़ की प्रकृति में भी कई तरह की विशेष ताएं मौजूद हैं। दंतेवाड़ा जिले में मौजूद बैलाडीला अपने में हजारों रहस्यसमेटे हुए है, यहां की रहस्यमयी पहाड़ों पर डायनासोर काल की विलुप्त हो रही वनस्प तियां भी मौजूद है।

इन्हीं में एक है ट्री-फर्न….जो आज से 3 लाख वर्ष पहले हमारी धरती पर बहुतायत में पाई जाती थी, डायनासोर युग में…,तब ट्री फर्न कीप्रजाति पाई जाती थी,जोशाकाहारी डायनासोर का मुख्यभोजन था।संस्कृत,परंपरा में अनूठे बस्तर में प्रकृति की अपनी थाती में भी कई विशिष्टताएं मौजूद हैं। यह तो कहा ही जा सकता है कि बस्तर में कभी डायनासोर भी पाए जाते थे…! बैलाडीला की प्रसिद्धि यहां लौह अयस्क खदानों की वजह से है। बचेली-किरंदुल में राष्ट्रीय खनिज विकास निगम की परियोजनाएं हैं। पहाड़ों को काटकर उच्च क्वालिटी का लौहअयस्क निकाला जा रहा है। ऐसे में वैज्ञानिक महत्व के ट्री फर्न के भी विलुप्ती का खतरा मंडरा रहा है,समुद्रतल से 1260 फीट ऊंचाई पर स्थित बैला डीला पहाड़ की जलवायु कई विशेष प्रजाति केजीवों व पादपों के अनुकूल है। बैलाडीला पर अध्ययन कर चुके जीव विज्ञानी बताते हैं कि इन पहाड़ों पर लाइको पोडियम, सेलाजिनेलाआदि प्रजाति के पादप भी थे, माइनिंग की वजह से कई पादप प्रजातियां विलुप्त हो गई। धरती पर पादपों के उद्भव व विकास क्रम को वैज्ञानिक रूप से समझने में ट्री फर्न उपयोगी है। इसे बचाने विशेष प्रयास किए जाने चाहिए। वैज्ञानिकों के अनुसार दस फीट का पौधा बनने में लगते हैं 300 वर्ष!ट्री फर्न का वैज्ञानिक नाम क्याथेल्स है।यह लेप्टो सपो सेंगिएट फर्न है। ट्री फर्न में जड़,तना,पत्ता होता है फूल नहीं लगता। पत्तियां लंबी, नुकीली कोमल होती हैं। इस पौधे का विकास बेहद धीमी गति से होता है। इन्हें आठ से दस फीट लंबा होने में दो से तीन सौ साल लग जाते हैं। बैलाडीला में पाए गए ट्री फर्न करीब 500 साल पुराने हैं और 20 फीट तक लंबे हैं, जो वृक्ष कारूप ले चुके हैं। बैलाडीला में ट्री फर्न के 327 पौधे हैं।बचेली वन परिक्षेत्र के कंपार्टमेंट नंबर 3-4 के करीब 33 हेक्टेयर में ट्री फर्न के पौधे मिलते हैं।बचेली के रेंज अफसर के मुताबिकबचेली के गलीनाला,राजाबंगला नाला में ट्री फर्न पाए जाते हैं। यह नम स्थलों पर पाई जाने वाली पादप प्रजाति है। संरक्षण के लिए वन विभाग उन जगहों पर नमी क्षेत्र का विकास कर रहा है।3 किमी क्षेत्र संरक्षित ट्री फर्न का उल्लेख 1942 में ग्लास फर्ड की रिपोर्ट में मिलता है। यहां पाई जाने वाली प्रजाति तीन करोड़ साल पुरानी है। केंद्रीय पौध संर क्षण बोर्ड ने इस इलाके के तीन किमी क्षेत्र को संर क्षित कर रखा है। इलाके में पुरानी प्रजाति के केन बेंत के पौधे भी पाए जाते हैं।

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