विश्व का सबसे लम्बा चलने
वाला बस्तर दशहरा:जहाँ
रावण वध ही नहीं होता {किश्त 260}
बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा पर्व देश में उत्साह के साथ मनाया जाता है, इस दिन भगवान राम ने रावण का वध कर सीता माता को बंधन से मुक्त कराया था।इस दिन बाद में रावण का पुतला जलाकार लोग बुराइयों के दहन का संकल्प लेते हैं।लेकिन भारत में एक जगह है जहां दुनिया का सबसे लंबे समय तक चलने वाला दशहरा मनाया जाता हैऔर यहां पर रावण का वध नहीं होता बल्कि माता की पूजा होती है, रथयात्रा निकाली जाती है। यह दशहरा अपने आप में खास है।यह अनूठा दशहरा आदिवासी इलाके बस्तर में मनाया जाता है।इसे ‘बस्तर का दशहरा’ भी कहा जाता है,जिसकी चर्चा देश-दुनिया में होती है,समा रोह में शामिल होने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों के साथ-साथ विदेशों से भी सैलानी आते हैं,बस्तर के दशहरे में राम-रावण युद्ध नहीं, बल्कि बस्तर की माँ दंतेश्वरीके प्रति अपार श्रद्धा दिखाई देती है,बस्तर का दशहरा देश भर में प्रसिद्ध है।75 दिनों तक चलनेवाले इस पर्व की शुरूआत हरेली अमावस्या से हो जाती है। जिसे सभी वर्ग,समुदाय, जाति-जनजातियों के लोग धूमधाम के साथ मनाते हैं।बस्तर दशहरा में राम-रावण के युद्ध की नहीं बल्कि मां दंतेश्वरी माता के प्रति अपार श्रद्धा होती है।पर्व का शुभा रंभ पाटजात्रा रस्म के साथ होता है।
617 साल पहले शुरु
हुआ बस्तर दशहरा
बस्तर दशहरा की शुरूवात चालुक्य वंश के चौथे राजा पुरूषोत्तम देव के समयलग भग 617 साल पहले यानी 1408 ई. में हुई थी। पुरू षोत्तम देव, जगन्नाथपुरी की यात्रा पर गए थे। जगन्नाथ स्वामी ने पुरी के राजा को स्वप्न में कहा था कि बस्तर नरेश की अगवानी, उनका भव्य सम्मान करें,वे भक्ति, मित्रता के भाव पुरी आ रहे हैं।बाद पुरी के राजा ने भी बस्तर के राजा का स्वागत किया। वहीं बस्तर नरेश ने पुरी के मंदिरों में एक लाख स्वर्ण मुद्राएं,रत्न -आभूषण बेशकीमती हीरे-जवाहरात जगन्नाथ स्वामी को अर्पित किए थे।इससे प्रसन्नहोकर जगन्नाथ स्वामी ने सोलह चक्कों का रथ राजा को प्रदान करने की बात पुजारी से कही थी। जिस पर चढ कर बस्तर नरेश और उनके वंशज दशहरा पर्व मनाएंगे। साथ ही राजा पुरूषोत्तम देव को ‘लहुरी रथपति’ की उपाधि से सम्मानित किया।पुरी के राजा से मैत्री संधि होने के बाद पुरूषोत्तम देव बस्तर वापस लौटे, स्वामी जगन्नाथ, बलभद्र सुभद्राकी काष्ठ प्रतिमा समेत पूजा अर्चना के लिए कुछ ब्राह्मण परिवारों को लेकर आए थे।बस्तर नरेश ने 16 चक्कों के रथ का विभाजन कर इसके चार चक्कों को भग वान जगन्नाथ को समर्पित कर दिया। शेष 12 पहियों का एक विशाल रथ मां दन्तेश्वरी को अर्पित कर दिया था।
1610 में बनाया गया
था 8 पहियों का रथ
बस्तर के मधोता ग्राम में पहली बार 1468 में दश हरा रथयात्रा निकाली गई थी। कई साल बीत जाने के बाद जब 12 चक्कों के रथ संचालन में असुविधा हुईतो आठवें राजा वीरसिंह ने 1610 में इसे 8 पहियों का विजय रथ व 4 पहियों का फूल रथ बनवाया था,जो आज भी बनाया जाता है।