छगढ का पहला, एकमात्र
ईंट निर्मित चैत्य मंदिर
भोंगापाल में… {किश्त 274}
कोंडागांव जिले के फरस गांव ब्लॉक स्थित एक गाँव है भोंगापाल, लगे जंगल में मिली करीब 1500 साल पुरानी बुद्धप्रतिमा स्थानीय लोग ‘डोडा मुखिया’ या ‘डोकरा बबा’ के नाम से पूजते हैं, ये दुर्लभ प्रतिमा है,ग्राम पंचा यत भोंगापाल के दो किमी दूर घने वन, लतुरा नदी के तट पर ईट निर्मित ऐतिहासिक बौद्ध चैत्यगृह स्थापित है। प्राचीन टीला, बुद्ध प्रतिमा स्मारक छग राज्य द्वारा संरक्षित है विगत वर्षों में पाया गया यह एक मात्र चैतालय है, छठवीं शताब्दी में नल वंश के नरेशों द्वारा निर्मितप्रतीत होता है बुद्ध चैत्य, प्राचीन हिन्दू मंदिर 5 वीं-6 वीं शता ब्दी के हैं, जगह की खुदाई से पहले 1.20 मीटर चौड़ी, 1.30 मीटर लंबी विशाल बुद्ध की मूर्ति मिली है।यह प्राचीन मूर्ति खराब रूप में है।चैत्य मंदिर ईंटों से बना है, छत्तीसगढ़ का पहला और एकमात्र ईंट निर्मित चैत्य मंदिर है इसे बस्तर संभाग का एक मात्र ईंट निर्मित चैत्यगृह का गौरव मिला हुआ है। वर्ष 1990- 91 में खुदाई के दौरान यह चैत्य गृह सामने आया,200 गज दूर दो सप्तमातृकटीला है जिसे ‘रानीटीला’ के नाम से जाना जाता है।भोंगापाल में खुदायी में प्राप्त बौद्ध चैत्यगृह,मंदिरों के भग्नाव शेष बस्तर में बौद्ध भिक्षुओं के आवाग मन तथा निवास के प्रमाणों को पुष्टि प्रदान करते हैं।कोंडागांव जिले के केश काल और कोंडागांव के मध्य स्थित फरसगांव से 16 किमी पश्चिम में बड़े डोंगर से आगे ग्राम भोंगा पाल स्थित है।भोंगापाल से 3 किमी दूर तमुर्रानदी के तट पर टीले में विशाल चैत्य मंदिर सप्तमातृका मंदिर, शिव मंदिर के भग्न अव शेष प्राप्त हुए हैं।बुद्ध की प्रतिमा को स्थानीय लोग डोकरा बाबा नाम से भी जानते हैं!सप्त मातृका टिला या रानी टिला, बौद्ध प्रतिमा टिला से 200 गज की दूरी पर स्थित है। यहां एक बड़ा शिव मंदिर, अन्य प्राचीन मंदिरों के भग्नाव शेष हैं किन्तु उनकी कोई प्रतिमा प्राप्त नहीं हुई हैयहां से प्राप्त बौद्ध चैत्य, प्राचीन मंदिर 5-6वीं शताब्दी के हैं। चैत्य मंदिर का निर्माण एक ऊंचे चतूबरे पर किया गया है। मंदिर पूर्वाभिमुखी है। मंदिर के भग्नावशेषों का पिछला हिस्सा अद्र्ध- वृत्ताकार है जिस पर मंदिर का गर्भगृह,प्रदक्षिणा पथ, मंडप तथ देवपीठिका के भग्नावशेष हैं। कहा जा सकता है कि संभवत: यह बौद्ध भिक्षुओं का निवास स्थल रहा होगा।खुदाई से पहले यहां एक विशाल बौद्ध प्रतिमा प्राप्त हुई थी। यह प्रतिमा प्राचीन होने के साथ खंडित अवस्था में है।यहां के स्थानीय लोग इस प्राप्त बौद्ध प्रतिमा को तंत्र विद्या के देवता ‘गांडा देव’ के नाम से संबोधित करते हैं,सप्तमातृका को गांडादेव की पत्नियां मानते हैं। प्राप्त द्विभुजी बुद्ध की प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में है। दोनों हाथ खंडित है,विशाल ठोस प्रभामंडल, सिकुड़ा हुआ पेट है। मुखमंडल सौम्य अंडाकार है,सप्त मातृका मंदिर के भग्नाव शेष चैत्य मंदिर टीले से दो सौ गज की दूरी पर मिलते हैं। ईंटों से निर्मित मंदिर पश्चिमाभिमुखी है।मंदिर का समय 5वीं शताब्दी ईस्वी माना जाता हैउत्तरी भाग में अन्य अत्यंत प्रचीन पूर्वा भिमुखी मंदिर के भग्नाव शेष प्राप्त होते हैं,मंदिर ईटों से निर्मित था,किन्तु कोई प्रतिमा नहीं मिली है,प्राचीन टीले के दक्षिणी भाग मेंईटों से निर्मित एक पूर्वाभिमुखी मंदिर है, जिसे यहां के लोग बड़े शिव मंदिर के नाम से पुकारते हैं। मंदिर में गर्भगृह है,गर्भगृह में जलहरी युक्त शिवलिंग है। जलहरी,धरा तल पर स्थित है!यहां के लोग बुद्ध की प्रतिमा को भोंगा देवता के नाम से पूजते हैं। तांत्रिक शक्तियोँ की प्राप्त के लिये लोग शिव लिंग और बुद्ध की प्रतिमा का प्रयोग करने लगे थे,यहां उड़ी अफवाह के अनुसार लोगोँ ने सम्मोहन शक्ति के लिये बुद्ध प्रतिमा की नाक और शिवलिंग का उपरी हिस्सा घिस कर प्राप्त चूर्ण को मिलाकर सम्मोहन चूर्ण बनाने लग गये थे,चूर्ण का खासकर प्रेमियोँ ने अपनी प्रेमिका को प्राप्त करने में उपयोग करने लग गये थे। तांत्रिकोँ ने भी इस प्रतिमा को घिस कर सम्मोहन चूर्ण का नाम देकर लोगों को मूर्ख बनाया।बुद्ध प्रतिमा का नाक ओर शिवलिंग का उपरी हिस्सा पुरी तरह से सम्मोहन चूर्ण बनाने में घिस गया ,किंतु बाद में गांववालोँ ने एक कमरे में बुद्ध प्रतिमा को स्थापित कर दिया, बौद्ध चैत्यगृह, मंदिरों के भग्नावशेष बस्तर में बौद्ध भिक्षुओं के आवागमन,निवास आदि के प्रमाणों को पुष्टि प्रदान करते हैं। निश्चित ही तब बस्तर में बौद्ध धर्म का बोल बाला रहा होगा, पास के जैपौर,बोरीगुम्मा, आसपास के ओडिसा के गांव में बौद्ध प्रतिमायेँ एवँ बौद्ध अवशेष प्राप्त होते हैं।दक्षिण बस्तर में अभी तक बौद्ध धर्म के कोई ठोस अवशेष प्राप्त नहीं हुए , अभी भी खोज जारी हैं।