मुख्यमंत्री निवास में आज छत्तीसगढ़ की पारंपरिक संस्कृति की झलक देखने को मिली, जब हरेली तिहार के अवसर पर पूरे परिसर में लोक यंत्रों की गूंज, पारंपरिक धुनें और रंग-बिरंगे परिधानों में सजे लोक कलाकारों का उत्सवमय नजारा छा गया।
मुख्यमंत्री निवास का वातावरण ग्रामीण संस्कृति की जीवंत तस्वीर में तब्दील हो गया, जहां एक ओर राउत नाचा कर रहे यादव कलाकारों की टोली अपनी पारंपरिक लाठियों और कौड़ियों से सजे वस्त्रों के साथ नृत्य कर रही थी, तो दूसरी ओर आदिवासी लोक कलाकार पारंपरिक नृत्य की मोहक प्रस्तुतियाँ दे रहे थे।
छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान: राउत नाचा
राउत नाचा, छत्तीसगढ़ की लोक-संस्कृति का एक प्रमुख पारंपरिक लोकनृत्य है, जो विशेष रूप से दीपावली के बाद गोधन पूजा और गोवर्धन पूजा के समय किया जाता है। इस नृत्य में यादव समाज के लोग भाग लेते हैं और यह भगवान श्रीकृष्ण और गोधन की आराधना का प्रतीक है।
लोक कलाकार सिर पर पगड़ी, हाथों में लाठी और रंगीन वस्त्रों के साथ तालबद्ध होकर प्रदर्शन करते हैं। उनके वस्त्र कौड़ियों, घुंघरुओं, शीशों और अन्य पारंपरिक सजावटी वस्तुओं से सजे होते हैं।
ढोल, मांदर और नगाड़े की थाप पर थिरके नर्तक
कार्यक्रम में बजने वाले पारंपरिक वाद्य यंत्र — ढोल, मांदर और नगाड़े — ने समूचे आयोजन को जीवंत बना दिया। इनकी थाप पर कलाकारों ने सामूहिक रूप से तालबद्ध नृत्य किया। नाचा के साथ गाए जाने वाले राउत गीतों में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएं, धर्म, वीरता और प्रेम की भावनाएं गूंजती रहीं।
सांस्कृतिक एकता और ग्रामीण गौरव का उत्सव
इस आयोजन ने यह संदेश भी दिया कि राउत नाचा केवल धार्मिक या परंपरागत नृत्य नहीं, बल्कि यह सामाजिक एकता, श्रम की महत्ता और पशुपालन जैसे ग्रामीण जीवन के मूल तत्वों को भी रेखांकित करता है।
मुख्यमंत्री निवास में हरेली तिहार पर आयोजित यह सांस्कृतिक कार्यक्रम न केवल छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक-संस्कृति को मंच प्रदान करता है, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का भी कार्य करता है।