छ्ग का एकमात्र बम्हा
मंदिर रायपुर में ,बिरंची नारायण
के रूप में बम्हा,विष्णु और लक्ष्मी की प्रतिमाएं…. {किश्त 256}
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में प्राचीन काल से जुड़े कई मंदिर हैं,इन्हीं में एक विशेष मंदिर भगवान बिरंची नारायण का है, राय पुर के बूढ़ातालाब केसामने ब्रह्मपुरी इलाके में भगवान बिरंची नारायण यानी ब्रम्हा -विष्णु का मंदिर है। छत्तीस गढ़ में ऐसा दूसरा मंदिर नहीं है, जहां अष्टधातु से भगवान ब्रह्मा यानी बिरंची और नारायण यानी विष्णु का मंदिर है।दक्षिण भारत में विशाल पद्मनाभनस्वामी कीप्रतिमा विराजित है,उसी तर्ज पर छग के बिरंची-नारा यण की छोटी सी प्रतिमा प्रतिष्ठापित है।क्षीर सागर में 11 नागों के फन परविश्राम करते हुए विष्णु की प्रतिमा है,विष्णु की नाभि सेनिकले पुष्प पर ब्रह्मा विराजे हैं।मंदिर के महंत के अनुसार रायपुर के ब्रम्हपुरी इलाके में बिरंची नारायण कामंदिर है ऐतिहासिक दृष्टि से यह मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है।नृसिंह भगवान के मंदिर के बाजू में ही बिरंची नारायण भगवान का मंदिर है,बिरंची यानी ब्रम्हा होते हैं, नारायण मतलब श्रीहरि विष्णु होते हैं।इसी वजह से इस इलाके का नाम ही ब्रम्हपुरी पड़ाहै। यहां स्थापित मूर्ति की बहुत विशेषता है।मूर्ति में विष्णु सैया पर लेटे हुए हैं, माता लक्ष्मी,विष्णुजी के पैर दबा रहीं हैं बीच में ब्रम्हाजी हैं।छग के प्राचीन शहर और राजधानी रायपुर केब्रम्हपुरी में स्थित विरंची-नारायण और नरसिंह नाथ मंदिर की प्रतिमाएं तकरीबन 1150 साल पुरानी हैं।प्रतिमा की खास बात है कि गर्मियों में ये ठंडी और ठंड के मौसम में गर्म रहती है।पुष्कर में ब्रह्मा को समर्पित मंदिर दुनिया का सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हो सकता है, लेकिन ये निश्चित रूप से भारत का एकमात्र ब्रह्मा मंदिर नहीं है। हालांकि,ये ब्रह्मा को समर्पित सबसे पुराना मंदिर है। ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मा अन्य देव ताओं की तुलना में काफी उदार थे,उन्होंने अपनेआशी र्वाद के नतीजों पर बिना विचार किये ही भक्तों को वरदान दिया है। कहते है कि उन्होंने हिरण्यकश्यप -महिषासुर से लेकर रावण तक को आशीर्वाद दिया था,जिसकी वजह से कई देवताओं को नकारात्मक परिणाम सहने पड़े थे,इतनी कम संख्या में उनके मंदिर होने का यह भी कारण हो सकता है।
छ्ग का एकमात्र
बम्हा मंदिर…
पूरे छत्तीसगढ़ में यहां विष्णु और ब्रम्हा की एक मात्रमूर्ति है,जो अष्टधातु से बनी है।यहां नरसिंह की हिरण्य कश्यप का संहार करते प्रतिमा भी मौजूद है,जहां उनके बगल से प्रह्लाद खड़े हैं।माना जाता है कि करीब 1150 साल पहले राजा हर हरवंशी ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। 28 खंभों पर टिके इस मंदिर के सभी खंभे तीन फीट चौड़े और 10 फिर लंबे हैं।वहीं छत की चौड़ाई तीन फीट से भी ज्यादा है।इस मंदिर की छत पर अलग-अलग ताबीज के आकार बनाये गए हैं।इस मंदिर के गर्भगृह में दोनों देवों की प्रतिमाएं विराजितहैं,मंदिर के पुजारी की मानें तो प्रतिमाएं जागृत हैं,इसलिए बार-बार अपना स्वरूप बदलती हैं, पुरातत्व विद् स्व.अरुण शर्मा ने बताया था कि ‘प्रतिमा का तीसरा भाग काफी नीचे तक है, इसी कारण वह पानी में डूबी रहती है।इसके कारण प्रतिमाएं गर्मी में ठंडी और ठंड में गर्म रहती हैं।जमीन के नीचे पानी का स्वभाव होता है कि जब मौसम ठंडा रहे तो पानी गर्म रहता है, जब मौसम गर्म रहता तो पानी ठंडा, इसलिये प्रतिमा भी मौसम के विपरीत ही रहती है, इसमें कोई चमत्कार नहीं है।