रायपुर, छत्तीसगढ़। भारतमाला प्रोजेक्ट के अंतर्गत रायपुर-विशाखापट्टनम कॉरिडोर के लिए हो रहे जमीन अधिग्रहण में बड़े घोटाले का खुलासा हुआ है। हरिभूमि की ग्राउंड रिपोर्टिंग में सामने आया है कि करोड़ों रुपए मुआवजा जिन लोगों को दिया गया है, उनमें से 70 प्रतिशत को गांव वाले पहचानते तक नहीं।
जमीन खरीदी का खेल, मुआवजा की लूट
प्रोजेक्ट के नोटिफिकेशन के साथ ही बाहरी लोगों ने अचानक गांवों में जमीन खरीदना शुरू कर दिया। कई भोले-भाले ग्रामीणों ने सस्ते दाम पर अपनी जमीनें बेच दीं, और बाद में उन्हीं जमीनों को कागजों में टुकड़े कर भारी मुआवजा हासिल कर लिया गया।
ग्रामीण बोले: “हमारी ज़मीन से करोड़ों कमाए, हमें कुछ नहीं मिला”
नायकबांधा, टोकरो और उरला जैसे गांवों में हरिभूमि की टीम ने जब मुआवजा पाने वालों के बारे में ग्रामीणों से पूछताछ की, तो लोग चुप्पी साधे रहे। कई ग्रामीणों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जांच एजेंसियों के डर से कुछ कहने से डर लग रहा है।
सरपंच का बड़ा बयान: “मुआवजा पाने वाले आधे से ज्यादा बाहरी”
नायकबांधा गांव के सरपंच भारती गौकरण साहू ने खुलकर बताया कि जब भारतमाला सड़क निर्माण की सूचना आई, तभी कई बाहरी कारोबारी आए और स्थानीय जमीनें खरीदीं। बाद में उन्हीं लोगों ने मुआवजा के नाम पर करोड़ों की रकम ली और अब गांव में नजर तक नहीं आते।
ग्रामीणों का सवाल: “अब वसूली कैसे होगी?”
ग्रामीणों के मन में अब यही सवाल है कि:
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जिन्होंने अवैध तरीके से मुआवजा लिया, उनसे वसूली कैसे होगी?
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क्या इन बाहरी लाभार्थियों पर कानूनी कार्रवाई होगी?
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क्या जिन किसानों को राशि नहीं मिली, उन्हें अब मुआवजा मिलेगा?
आंकड़ों में घोटाले की तस्वीर:
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अब तक 6 गांवों के 506 भूस्वामियों को 243 करोड़ रुपये से अधिक का मुआवजा दिया गया।
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अभी भी 206 किसानों का ₹81.46 करोड़ रुपये मुआवजा लंबित है।
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सबसे ज्यादा गड़बड़ी भेलवाडीह, उरला, झांकी, नायकबांधा और सातपारा में हुई।