डॉ.अंबेडकर 12 दिसम्बर 1945 को रायपुर आये थे,आमसभा लारी स्कूल में …{ किश्त 261}

डॉ.अंबेडकर 12 दिसम्बर
1945 को रायपुर आये
थे,आमसभा लारी स्कूल
में …{ किश्त 261}

डॉ. भीमराव अंबेडकर 12 दिसम्बर 1945 को रायपुर आए,(मराठी वाँग्मय(मराठी भाषा)में बाबासाहेब अम्बे डकर लेखन अणि भाषणे खंड 18 (भाग 2) 1937- 1945,पाठ 230,पृष्ठ 583 -584 में ‘कम्युनिस्ट स्टापाँ सून सावध रहा’ में दर्ज है, कि 12 दिसम्बर 1945 को वे रायपुर पहुंचे थे)उस समय भी उनका प्रभाव छत्तीसगढ़ के लोगों पर था, इसलिये डॉ.अंबेडकर को लोगों ने यहां बुलाया था।बाबासाहब ने 1920 में ’मूक नायक’,1927 में ’बहि ष्कृत भारत’ और 1937 में एक मैगजीन निकाली थी ’जनता’। तीनों मैग्जीनों का छ्ग में अच्छा प्रभाव थाछग में एक संत थे गुरु घासी दास। गुरु के बेटे का नाम थाअजबदास, उनके बेटे का नाम था मुक्तावन दास। मुक्तावन दास को जेल हो गई थी। वह कोई ग्रामीण घटना रही होगी…। जिसके कारण उन पर 302 और 355 की धारा लगी थी। वे रायपुर के केन्द्रीय जेल में थेउनसे बहुत लोग मिलने जाते थे और जेलर बहुत परेशान हो जाता था। बैल गाड़ी से लोग आते थे,याता यात जाम हो जाता था।पूरा जेल प्रागंण भर जाता था, तो मुक्तावनदास को नागपुर के पास अमरावती जेल में शिफ्ट कर दिया गयाउसके बाद लोग यहां से बैलगाड़ी में मिलने वहाँ जाते थे, क्योंकि गुरुपुत्र थे,बड़ा नाम भी था उनका।बहुतसमर्थक़ थे। जब अन्य कैदियों ने देखा कि छग से बैलगाड़ी में लोग मुक्तावन दास से मिलने आते हैं, इसकी क्या वजह है…? तो मुक्तावन दास ने बताया था कि मैंने कोई जुर्म नहीं किया है तो बाकी कैदियों ने कहा कि यदि तुमने कोई जुर्म नहीं किया है और कैद में हो, तो तुम्हें एक आदमी बचा सकता है,डॉ.बाबा साहेब अंबेडकर,मुक्तावन दास ने प्रयास किया। मित्र नकुल देव ढिढी ने डॉ.अंबेडकर को संपर्क किया।उस समय सीपी एंड बरार था,वर्तमान छग,मप्र का क्षेत्र भीशामिल था। नागपुर राजधानी थी, हाईकोर्ट भी नागपुर में था। तो बाबा साहेब, मुक्तावन दास का केस लड़ने हाई कोर्ट नागपुर आते थे,वह प्रकरण 1929 में लड़ा गया उसका नंबर था 1872,उस प्रकरण में दो जज नियोगी और ग्रोवर थे। बाबा साहेब उस केस को लड़ते हैं और मुक्तावनदास बाइज्जत बरी हो जाते हैं। मुक्तावन दास जब बाइज्जत बरी हो छग लौटे हैं,तो चांदी के सिक्कों से तौला गया। उसी के बाद बाबासाहब को छग आने का निमंत्रण दिया गया, छग में उस समय बहुत लोग बाबासाहेब समर्थक थे। डॉ अंबेडकर के छग प्रवास पर कई लोगों ने उनकीअगुवाई की। इसके भी अलग तथ्य है। बाबा साहेब की जो एक मैगजीन आती थी ’जनता’, पढ़ जागरूकता आई थी, समानता की भावना आगई शिक्षा का प्रसार हुआ।बाबा साहेब जब आए तब बंशी राम रामटेके, घनाराम सिम नकर राजनांदगांव,वर्तमान बालोद जिले के अर्जुंदा से चोवाराम महिश्वर,ग्राम जुंगेरा से जेआर.सुखदेवे गुरुजी,धमतरी से ज्योति राव वैद्य,महासमुंद नकुल देव ढिढी थे।नागपुर सेसाथ में बाबू एलएलएमएल. हर दास, मिस्टर आवड़े बाबू भी साथ आये थे।नकुलदेव ढिढी शुरू से सामाजिक कार्यकर्ता थे। छत्तीसगढ़ को अलग बनाने के लिए सत्याग्रह प्रारंभ भी नकुल देव ने ही किया था। इसके लिए वे दो बार जेल भी गए। जमींदार,जुझारू थे, सामाजिक असमानता के खिलाफ लड़ते थे,डॉ बाबा साहेब की भी यही भावना थी।नकुलदेव ढिढ़ी,डॉ भीम राव अंबेडकर से प्रभावित थे। बाद में अंबेडकर की राजनीति पार्टी ‘आरपीआई’ के सदस्य रहें,भारतीय बौध्द महासभा के प्रेसिडेंट रहें।मुक्तावनदास,जब बरी हुए थे।रायपुर आमापारा में एक कम्युनिटी का हॉस्टल था। वहां एक गढ़ था, वहां निश्चित जाति के लोगों की शिक्षा का कार्यक्रम होता था। जब मुक्तावन दास,कैद से मुक्त हो छ्ग आये थे। बाबा साहब का वरदहस्त उनके ऊपर था,मुक्तावन दास वहां से आने के बाद उनकी पार्टी मजबूत हुई। बाबा साहेब की पार्टी आर पीआई (रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया) का छ्ग में गठन किया गया। लोगों की समानता के लिए लोगों को जागरूक किया।असमानता खिलाफ लड़ाई लड़ीं। छुआ -छूत की भावना थी,उसके लिए नकुलदेव ढ़िढी, उनके सहयोगी गांव-गांव दौरा करते थे,रावटी रखते थे जागरण का काम करते थे, इस तरह की बैठक ले छग में जनजागरण अभियान चलाया। बाबा साहेब का पहला संगठन था, शेड्यूल कास्ट फेडरेशन,दूसरा संग ठन था,स्वतंत्र मजदूर पार्टी और इनके प्रतिनिधि भी रहे और पार्टी महाराष्ट्र में जीती भी थी। बाद में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया नाम से एक पार्टी बनाई ओर जिस पर आज भी छत्तीसगढ़ के लोग खड़े होते थे।उससमय शुरूआती दौर में यह पार्टी बनाई गई तब इनका चुनाव चिन्ह हाथी था,नीला झंडा ही था। बाद में रिपब्लिकन पार्टी का डिवीजन हुआऔर यह चुनाव चिन्ह दूसरे को आवंटित हुआ। लेकिन उस समय रायपुर से नकुलदेव ढिढ़ी लोकसभा केे प्रत्याशी हुआ करते थे। फिर बाद में मि. टंडन बने। ये लोग भी छत्तीसगढ़ में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के बैनर तले चुनाव लड़ चुके हैं। बाबा साहेब रायपुर आए तो उस समय एक ही ट्रेन चलती थी। बाम्बे से हावड़ा के लिए। उसी बॉम्बे हावड़ा ट्रेन मेल से आए थे। उनके साथ बाबू हरदास आए थे, आवड़े बाबू भी साथ आये थे। मुंबई से नागपुर से ही बंशीलाल खोबरागड़े आए फिर उनको दुर्ग स्टेशन पर चोवाराम महेश्वर, जेआर. सुखदेवे गुरुजी ने रिसीव किया। जब वे स्टेशन से उतरे तब भव्य स्वागत हुआ था, रायपुर स्टेशन से रैली सभास्थल पहुंची थी, जिसे वर्तमान में माधवराव सप्रे स्कूल कहते हैं, वह उस समय लारी स्कूल के नाम से जाना जाता था। रेलवे स्टेशन रायपुर से लारी स्कूल तक आने में शाम हो गई। डॉ अंबेडकर रायपुर रेलवे स्टेशन पर 2 बजेउतरे और लाॅरी स्कूल सभा स्थल तक पहुंचने में 4 बज गये। तकरीबन तीन चार किमी का रास्ता था। सभा स्थल दुल्हन की तरह सजा हुआ था। लोग गांव-गांव से घोड़ा-गाड़ी, बैल-गाड़ी में आए थे, अपना खाना एक दिन पहले लेकर आए थे या वहीं सभास्थल केआसपास खाना पकाया था। बाबा साहब के साथ में समता सैनिक दल जो समानता के लिए गांव-गांव जागरूक करता था वह दल भी साथ आया हुआ था। हाथ में लाठियां थीँ,लाठी में घुघंरू बंधा था। कोई उत्साह होता तो वे लाठी उठाकर घुंघरू को बजाया करते थे।ऐसा सभा स्थल का नजारा था। इस तरह वह रैली संपन्न हुई थी।’मूक नायक’ शुरूआती दौर की पत्रिका थी। बाद में दूसरी पत्रिका भी निकली ’बहि ष्कृत भारत’ और तीसरी ’जनता’मैगजीन,उस समय लोग जागरूक नहीं थे, जेआर.सुखदेवे गुरुजी हैं, उनके यहां भी एक मैग जीन आती थी। संस्मरण में उन्होंने लिखा है – एक ही मेल ट्रेन आती थी बांबे से हावड़ा। उस ट्रेन के पीछे में जो हरी झंडी लेकर गार्ड आता था। वह मैगजीन ले कर चलता था। 1939- 1940 के आसपास की बात है। 10 तारीख को मैगजीन मुंबई में छपती थी, 12 और 13 के बीच उस मैगजीन को उस ट्रेन का गार्ड रखा रहता था,तब राजनांदगांव स्टेशन में स्टा पेज नहीं था और लोग खड़े रहते थे। ट्रेन का गार्ड देख लेता था ओर वह जानता था कि ये लोग मैगजीन के लिए खड़े हैं तो दस बीस लोग मैगजीन के लिए खड़े रहते थे, 2-3 मैगजीन वह फेंकता था जिस पर लोग झपटते थे, मूल मराठी में मैगजीन छपती थी। शाम को राजनाँदगांव के घना राम सिमनकर उस मैगजीन को ट्रांसलेट कर उन दस बीस लोगों को बताते थे। वही मैगजीन फिरअर्जुंदा के टिकरी गांव में पदस्थ जेआर.सुखदेवे लाते थेऔर दुर्ग में भी उस मैगजीन का प्रचार-प्रसार हुआ।बाबा साहेब रायपुर आए। सभा हुई, उन्होंने कहा कि वे रायपुर पहली बार आए हैं। जिस तरह स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है , उसी तरह समानता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।उन्होंने कहा कि आप लोग शिक्षित होइये ,शिक्षित हो कर संगठित होइये और संगठित हो संघर्ष करिये। मुनष्य के लिए शिक्षित होने के बाद राजनीतिक, सामा जिक ताकत की जरूरत है।राजनीतिक, सामाजिक ताकत आएगी,तभी सामा जिक आर्थिक स्थिति सुध रेगी। इसलिए उन्होंने शिक्षा पर जोर दिया था। लोगों को कहा था कि ये देश कुछ दिनों,कुछ साल बाद स्वतंत्र होने जा रहा है। विशाल सभा में डॉ भीमराव अंबे डकर यह भी कहा था कि कुछ लोग इस देश का बंट वारा चाहते हैं, मैं बंटवारे के पक्ष में नहीं हूं,उन्होंने कहा था कि देश को दो टुकड़े होने नहीं दूंगा और मैंने जो दबे, पिछड़े और गिरे हुये लोगों के लिए अब तककाम किया है, स्वतंत्रता के बाद मैं इसके हक,अधिकार के लिए हमेशा लडूंगा। इनके अधिकार की लड़ाई के लिये मैं एक कदम भी पीछे नहीं हटूंगा।

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भीमराव रामजी आम्बेडकर (14 अप्रैल 1891–6 दिसं बर 19 56), डॉ॰ बाबा साहब आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता,अर्थशास्त्री, राज नीतिज्ञ, लेखक और समाज सुधारक थे,दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया, अछूतों (दलितों) से होने वाले सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया,स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्री,भारतीय संवि धान के जनक,भारत गण राज्य के निर्माताओं में से एक थे।
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