जगदलपुर 255 साल का,
लंदन के नमूने पर बसाया
गया था… {किश्त278}
जगदलपुर, छ्ग के बस्तर जिले का एक प्रमुख शहर है, इसका समृद्ध इतिहास है। कभी बस्तर रियासतकी राजधानी था, अब संभाग, जिला मुख्यालय है। 1770 में, काकतीय राजा दलपत देव ने राजधानी मधोता से जगतुगुड़ा स्थानांतरित की और जगदलपुर नाम दिया। जगदलपुर को “चौराहों का शहर” भी कहा जाता है, खूबसूरत वास्तुकला, घने जंगलों,आदिवासी संस्कृति के लिए जाना जाता है।स्था पना के सरकारी आयोजनों से बेखबर जगदलपुर 255 साल का हो गया है। जगतू गुड़ा के नाम का गांव 17 70 में काकतीय राजाओं की राजधानी बना। फिर अंग्रेजों ने प्रशासन के मुख्य केंद्र के रूप में स्थापित किया। आजादी के बाद बस्तर का प्रशासनिक केंद्र बना। काकतीय वंश के 13 वें शासक दलपत देव ने 1770 में अपनी राजधानी मधोता (बस्तर) से जगतू गुड़ा स्थानांतरित की और इसे जगदलपुर नाम दिया।1770 में राजधानी के स्था नांतरण का उल्लेख केदार नाथ ठाकुर की ‘बस्तर भूषण’ इतिहासकार हीरालाल शुक्ल के ‘बस्तर का मुक्ति संग्राम’ व अन्य ग्रंथों में मिलता है।राजधानी स्थानांतरण,शहर नामकरण की दिलचस्प कहानियां प्रच लित हैं। जगतूगुड़ा को राज धानी बनाने की कथा बस्तर के इतिहासकार पं केदार नाथ ठाकुर की कृति बस्तर भूषण में मिलती है।इसके अनुसार एक दिन राजा दल पतदेव सहयोगियों के साथ इंद्रावती के इस पार शिकार खेलनेआए थे।उनके पालतू कुत्ते, खरगोश से डरकर आगे नहीं बढ़े। यह बात दरबारियों को जब उन्होंने बताई तो जगह को वीर भूमि (योद्धाओं की भूमि) मान इसे राजधानी बनाने का फैसला लिया गया।उस दौर में मराठों के आक्रमण का भय था, इसे भी राज धानी परिवर्तन की एक वजह माना जाता है।1770 में जब काकतीय राज्य की राजधानी यहां बनाई गई तब यह माहरा समुदाय का रहवास था, मुखिया जगतू माहरा के नाम पर जगतू गुड़ा के नाम से जाना जाता था। उस समय करीब 50 झोपड़ियां थीं।इंद्रावती नदी के किनारे आज के प्रवीर वार्ड के पनारापारा के आस पास यह मौजूद थीं। बस्तर के पूर्व प्रशासक डब्ल्यू जी ग्रिग्सन ने अपनी किताब में इसका उल्लेख किया है। जगतू के नाम से जग और दलपत देव के नाम से दल को लेकर इसे जगदलपुर नाम दिया गया। नामकरण की यही कहानी सर्वमान्य है। अन्य मत के अनुसार वारंगल के राजा गणपति के मंत्री पुत्र जगदलमुग्दी ने जगदलपुर की स्थापना की थी,लेकिन बस्तर के अधि कांश लोग,इतिहासकार भी यह कहकर इस मत को खारिज करते हैं, गणपति के समय नागवंशी राजाओं का शासन था उनकी राज धानी चक्रकोट थी। उल्लेख मिलता है कि कुलदेवी से अनुमति लेकर माहरा समु दाय ने इस जगह काकतीय राजाओं को बसने देने की अनुमति दी थी।जगदलपुर की स्थापना के करीब 92 साल बाद सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर ग्लास फर्ड की 18 62 की रिपोर्ट उस दौर का एकमात्र उपलब्ध दस्तावेज है, जिसमें जगदलपुर के बारे में जानकारी मिलती है। मुताबिक तबजगदलपुर में 400 झोपड़ियां, राज महल एक बड़ी झोपड़ी के रूप में विद्यमान थे।जगदल पुर विकास योजना 2001 इसे आधार बनाकर लिखा गया है,यहां मिट्टी के दीवार और घास-फूस के छप्पर थे राजा का निवास स्थान भी कोई खास अच्छा नहीं था।आकार के लिहाज से अन्य मकानों से बड़ा था उसका निर्माण भी मिट्टी और ईंटों की दीवार, घास-फूस के छप्पर से हुआ था,
लंदन के नमूने पर
बसाया गया….
1770 से 1947 तक राज महल ही प्रशासनिक गति विधियों का केंद्र था इस लिए उसे केंद्र बिंदु मानकर यहां की बसाहट शुरू की गई थी। जगदलपुर को नियोजित आकार देने की परिकल्पना महाराजा रूद्र प्रतापदेव के दीवान, राय बहादुर बैजनाथ पंडा ने (1904-1910) की थी। जलापूर्ति, निकासी, सड़कों के निश्चित अंतराल में ही क्रासिंग समेत, नागरिक सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने की कल्पना की थी। लंदन की प्रतिकृति पर इसे बसाने का खाका खींचा गया था लेकिन इस ड्रीम प्रोजेक्ट को वे स्वयं आकार नहीं दे पाए थे। 19 10 के भूमकाल विद्रोह के बाद उन्हें हटा दिया गया था अंग्रेज प्रशासक कर्नलजेम्स ने विशेष आपरेशनचलाकर इसे साकार किया, सड़कों को चौड़ा किया गया,इसके दोनों किनारों पर ड्रेनेज के लिए पर्याप्त जगह छोड़ी गई। संकरी गलियाँ खत्म कर विस्थापितों को खुली जगहों में बसाया गया तब जातियों के अनुसार मोह ल्ले, पारा-टोला बसे। तद नुसार उनका नाम भी वैसा ही पड़ा।पनारापारा, ब्राह्मण पारा, हिकमीपारा, घड़वा पारा, राउतपारा, कुम्हार पारा, कोष्टापारा जैसे जाति सूचक क्षेत्रीय नाम आजभी प्रचलन में हैं, अब इनका स्थान वार्डों ने ले लिया है।आज के प्रतापदेव,सदर वार्ड का हिस्सा रियासत काल में परदेशी पारा के नाम से जाना जाता था। आज जिसे भैरमदेव वार्ड के नाम से जाना जाता है, अरण्यक ब्राह्मण परिवार बसाए गए थे। 255 साल की यात्रा में जगदलपुर कई ऐतिहासिक घटनाओं, बद लावों का साक्षी रहा है।17 70 से 1947तक रियासती दौर में जगदलपुर से 8काक तीय शासकों ने राज किया। इस दौरान ही एक दर्जन से ज्यादा दीवानों की हुकूमत रही। इनमें से कई नामदार तो कुछ कामदार साबित हुए। राजाओं,दीवानों की रूचि राजकाज को लेकर अलग-अलग रही। इनके किस्से लेखों, किताबों में दर्ज हैं। रियासतकाल के दरबारी षड़यंत्रों, विद्रोहों प्रशासनिक फैसलों का केंद्र जगदलपुर रहा। राजस्व, न्याय, वन,शिक्षा आदि से जुड़े जो फरमान यहां से जारी किये गये,आदिवासी अंचल की दशा-दिशा बद लने वाले साबित हुए। 18 76 के मुरिया विद्रोह केबाद लागू मुरिया दरबार की व्य वस्था आज भी दशहरा में प्रचलित है।
इन शासकों का रहा राज
दलपत देव (1731-17 74)दरियाव देव (1777 -1800)महिपाल देव (18 00-1842)भूपाल देव (18 42 -1853)भैरमदेव (18 53-1891)रूद्र प्रताप देव (1891-19 21)महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी(1921 -1936)प्रवीरचंद्र भंजदेव (1936-1948) तक….
राजशाही से लोकशाही
1910 के भूमकाल विद्रोह के बाद के दौर में बागियों को प्रताड़ित करने व सजा देने की अंग्रेजी हुकूमत का गवाह गोल बाजार है। इसे तब गेयर बाजार भी कहा जाता था। 25 मार्च 1966 को बस्तर के 20 वें शासक प्रवीरचंद्र भंजदेव की राज महल गोलीकांड में हत्या हो गई थी। राजशाही से लोक शाही की 255 साल की जगदलपुर की यात्रा में अनेक पड़ाव आए। रिया सत काल के मंदिर, महल व अन्य स्मारक आज भी नजर आते हैं। इनमें से कुछ समय के साथ नष्ट हो गए तो कुछ अतिक्रमित…..। राजा रूद्रप्रताप के शासन काल में अनेक भवनों का निर्माण किया गया था। तब के विश्रामगृह, जेल, पुराने कोर्ट भवन, अधिकारियों के आवास आदिआज मौजूद हैं।एक जनवरी 1948 को भारतीय संघ में बस्तर रिया सत का विलीनीकरणकिया गया जगदलपुर, बस्तर जिला का मुख्यालय बना।कभी बस्तर के कलक्टरों को जगदलपुर से उत्तर में चारामा से लेकर दक्षिण में कोंटा तक प्रशासन देखना पड़ता था। पहले बस्तर रायपुर संभाग के अधीन था।1982 में बस्तर को संभाग का दर्जा मिला, जग दलपुर कमिश्नरी मुख्यालय भी बन गयाआज जिला व संभाग मुख्यालय है। लोक शाही के नमूने तौर पर बड़ी बिल्डिंगकलेक्टोरेट है जिसे 1962 में बनाया गया था। कमिश्नरी,कोर्ट, जिला पंचा यत भवन,नगर निगमभवन नया बस स्टैंड,बीएसएनएल कार्यालय भवन अनेक बड़ी बिल्डिंगें पिछले तीन-चार दशक में बनी हैं।