तब कि खैरागढ़ रियासत- श्रीरुक्खड़ स्वामी बाबा का इतिहास एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। यूं कहें किआमनेर, पिपरिया और मुस्का से घिरे तीनों नदियों के बीच नगर का उदय रुक्खड़ बाबा से है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।शासक टिकैत राय के काल में ही रुक्खड़ बाबा अमर कंटक की ओर से खैरागढ़ आए।नागवंशी शासक खड गराय ने पिपरिया,आमनेर और मुस्का नदियों के संगम में बसे इस क्षेत्र में खड़गगढ़ नगर बसाया था इस क्षेत्र में खैर (कत्था) की अधिकता होने के कारण धीरे-धीरे खैरागढ़ कहा जाने लगा।
संवत 1816 (वर्ष 1753) में टिकैतराय खैरागढ़ के राजा बने थे, टिकैतराय के शासन में बाबा रुक्खड़ अमरकंटक की ओर से खैरागढ़ चले आए थे तब शासकों कि राजधानी खैरा गढ़ नहीं थी उस समय राज धानी खोलवा एवं बोदागढ़ थी और यह क्षेत्र उसी में शामिल था बात उस समय की है जब छग में भोसला शासकों का राज था और उसी समय ठगोँ, पिंडारियोँ और लुटेरों का उत्पात बहुत ज्यादा बढ़ चुका था जिससे खैरागढ़ का क्षेत्र भी विच लित था और बहुत परेशान रहता था,एक बार अधिक संख्या में लुटेरों का दलखैरा गढ़ की तरफ आ रहा था तब वर्तमान राजा चिंतित थे वे लड़ाई की तैयारी करने लगे,इसकी चर्चा उन्होंने बाबा रुक्खड़ नाथ से कि, जो सिद्ध बाबा थे, अपने परम तप से वे युद्ध की दिशा ही बदल सकते थे, हुआ कुछ ऐसा ही,लुटेरों ने खैरागढ़ क्षेत्र में कदम भी नहीं रखा और उसके सीमा के क्षेत्र से आगे बढ़ गए,यह घटना बीतने के बाद जब राजा पुनः बाबा से मिले तो उन्होने राजा से कहा-
“जब तक मेरी मढ़ी.. तब तक तेरी गढ़ी..” यानी बाबा ने कहा कि जब तक उनका पीठ यहां रखेगा तब तक यह गढ़ सुरक्षित रहेगा।
ज्ञात हो कि राजा टिकैत राय नागपुर के राजा रघुजी द्वितीय को एक बार वार्षिक कर नहीं चुका सके, क्योंकि अकाल पड़ा था। नागपुर का राजा इस मामले मेंखैरा गढ़ से निर्दयपूर्ण व्यवहार कर किसी भी स्थिति में कर चुकाने का आदेश खैरागढ़ राजा को दिया किन्तु फिर भी राजा ने कर चुकाने में असमर्थता व्यक्त की, नाग पुर का राजा क्रोधित होकर उसने तत्काल ही खैरागढ़ में अपनी सेना भेज कब्जा करने का आदेश दे दिया ऐसी स्थित में राजा टिकैत राय, बाबा रुक्खड़नाथ कि शरण में गए, वैसे तो बाबा बहुत काम वार्तालाप करते थे अधिकांश समय ईश्वर की आराधना और भगवान शिव की पूजा अर्चना में व्यस्त रहते थे उन्होने राजा की चिंता का विषय जाना, बाबा ने केवल इतना कहा कि समस्या बड़ी नहीं हैसब ठीक हो जायेगा, चिंता मत करो।
नागपुर की सेना खैरा गढ़ में युद्ध और कब्जे का लक्ष्य लेकर खैरागढ़ राज कीय सीमा के करीब आते जा रही थी कि तभी आश्चर्य पूर्ण घटना घटी, नागपुर के सैनिकों को रास्ते में सूचना मिली कि उनका राजा अचा नक मर गया है जिससे पूरी सेना को तत्काल नागपुर वापस आने आदेश है। वर्त मान सेनापति ने इस आदेश को मानते हुए खैरागढ़ पर कूच करने के लक्ष्य छोड़ नागपुर की वापसी कर डाली ।कहते है कि इस घटना को राजा टिकैत ने बाबा रुक्खड़ का चमत्कार ही माना क्योंकि यह एक असंभव घटना थी समय समय पर रुक्खड़नाथ बाबा के इस क्षेत्र में चमत्कार देखने सुनने लोगो को मिले है।
इसलिए यहां यह मंदिर आसपास के क्षेत्रोँ में भी और खैरागढ़(प्राचीन कत्था का क्षेत्र) का प्रमुख आस्था केंद्र है यहां वर्तमान पीठ के ठीक सामने बाबा ने उस काल में अपनी सिद्धि के बल पर अग्नि प्रज्वलित की थीअभी भी धूनी प्रज्वलित है यह यज्ञ कुंड भी बहुत गहराई तक है।ऐसा माना जाता है कि एक इंसान की ऊंचाई तक इसकी गहराई हो सकती है ।मान्यता अनु सार यही बाबा रुक्खड़ने समाधि ली थी यहां कीधूनी सुलगती हुई भी काफी ठंडक होती है इसे बाबा के चमत्कार के रूप में माना जाता है। पूरे भारत,अपितु विश्व में विभूति (राख) से बना यह एकमात्र सिद्धपीठ है।आज भी लोग यहां श्रद्धा भक्ति से दर्शन करने पहुंचते हैं।