विमल मित्र, छ्ग में थी पदस्थापना, उपन्यास “सुरसतिया”और प्रतिबन्ध.. {किश्त 262}

विमल मित्र, छ्ग में थी
पदस्थापना, उपन्यास
“सुरसतिया”और प्रतिबन्ध..
{किश्त 262}

छत्तीसगढ़ की पृष्ठभूमि पर विमल मित्र का लिखा गया एक सशक्त और मार्मिक उपन्यास “सुरसतिया”काफ़ी चर्चा में रहा.. शरतचंद्र के बाद बंगला के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार विमल मित्र के लिखे इस विवादास्पद उपन्यास को तब की मप्र सरकार ने प्रति बन्ध लगा दिया था,हालांकि देश के कुछ साहित्यकारोँ ने तब प्रतिबन्ध का विरोध किया था…

सुरसतिया उपन्यास का एक अंश…
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महाजन का रुपया देना है, इसलिये लड़की बेच रहा हूँ।फिर वह लड़की से कहने लगा…दिखला ! तो जरा सुरसतिया! जरा अच्छी तरह घूमकर दिखला..देख लो पटेल, जरा लड़की का गठन देख लो ! बाद में मत कहना कि जेठू रावत ने मेले की भीड़ में ठग लिया..!
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सुरसतिया, उपन्यास साप्ताहिक हिंदुस्तान में 22 फरवरी 1970 के अंक में प्रकाशित हुआ। बाद में हल चल बढ़ी,रायपुर में लेखक का पुतला और अंक की प्रतियाँ विरोध स्वरूपजलाई गई, तब के विधायक राजेंद्र प्रसाद शुक्ल ने इस मामले को मप्र की विधानसभा में भी उठाया, आरोप था कि इस उपन्यास में छत्तीसगढ़ की महिलाओं का विकृत चित्रण किया गया है, तब मप्र के सीएम श्यामाचरण शुक्ला थे, वे छ्ग विधायक थे,उन्होंने सुरसतिया के हिंदी अनुवाद पर प्रतिबन्ध की घोषणा कर दी। वैसे एक चर्चित उपन्यास का भी छ्ग से नाता रहा है…., मनेन्द्रगढ़ से 22 किमी दूर चिरमिरी कोलफील्ड एरिया स्थित हैजो हिलस्टेशन कहा जा सकता है। यह बहुत ही खूबसूरत जगह है।अनूपपुर -चिरमिरी(66 किमी) रेल मार्ग का अंतिम रेलवेस्टेशन चिरमिरी है। यहां का कोल माइनिंग का इतिहास भी है। यहां से कोयले को भारत के विभिन्न भागों में ट्रांसपोर्ट करने के लिए ही अनूपपुर -चिरमिरी रेलमार्ग का निर्माण कार्य 1930 तक पूर्ण हो गया।मनेन्द्रगढ़ से 11 किमी दूर चिरमिरीसे पहले पाराडोल नामकछोटा स्टेशन है।जानकारी के अनु सार बंगला साहित्य केकाल जयी लेखक स्व. विमल मित्र पाराडोल में स्टेशन मास्टर थे। कहा जाता है कि उपन्यास “साहब, बीबी और गुलाम ” की भूमिका यहीं बनी थी। उपन्यास में वर्णित धनाढ्य परिवार की अपनी कोयला खदानें थीं उनके आलस, मुलाजिम के विश्वासघात के कारण बिक जाती हैं और वे कंगाल हो जाते हैं।बाद में विमल मित्र का तबादला रायपुर केआगे स्थित राजनांदगांव हो गया था जहां “सुरसतिया” “शरबतिया” नमक लघु उपन्यास भी लिखे। कुछ लोग इसे तिल्दा से भी जोड़ते हैं।सुरसतिया पर जो विरोध और हंगामा हुआ वह हर साहित्य प्रेमी को मालूम है। इसके बाद ही विमल मित्र ने रेलवे की नौकरी छोड़ कलकत्ता की लाइब्रेरी में कार्य सम्हाल लिया था।बिमल मित्र (18 मार्च 1912 – 2 दिसंबर 1991) बंगाली भाषा के एक भारतीय लेखक थे। बिमल मित्र बंगाली के साथ-साथ हिंदी में भी समान रूप से लिखने में माहिर थे और उन्होंने 100 से ज़्यादा उपन्यास और लघु कथाएँ लिखीं। बिमल मित्र के कई उपन्यासों पर सफल फ़िल्में बनी हैंउनकी सबसे लोकप्रिय कृतियों में से एक, साहेब बीबी और गुलाम (जनवरी 1953) थी, जिसे बेहद लोकप्रिय फ़िल्म में रूपांतरित किया गया था। इस फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ कहानी के लिए फ़िल्मफ़ेयर नामां कन भी मिला।इस उपन्यास की पृष्ठभूमि छ्ग में ही बनी थी, ज़ब विमल मित्र छ्ग रेल्वे में पदस्थ थे।

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